मंगलवार, 29 मई 2012

मोदी ने उस सत्पुरुषो से क्या कहा

मोदी के साथे बौद्ध शिष्टमंडल, देखते हैं, कौन बुद्ध बनता है और कौन बुद्धु

हिन्दुत्व में विश्वास करो, क्योंकि मैंने आप को कहा है;
हिन्दुत्व में विश्वास करो, क्योंकि आप के पुरखों ने कहा है;
हिन्दुत्व में विश्वास करो, क्योंकि वह आप की परंपरा में है;
हिन्दुत्व में विश्वास करो, क्योंकि ऐसा शास्त्रो में लिखा है;
हिन्दुत्व में विश्वास करो, क्योंकि वह बहुमती का मत है (और जो बहुमती मानती है, वह नैसर्गिक तौर पर सेक्युलारीज़म ही है);
हिन्दुत्व में विश्वास करो, क्योंकि (चुनाव से पहले) वह मुसलमान-विरोधी है, और (चुनाव के बाद) सदभावना है.


बुधवार, 23 मई 2012

गुजरात पुलीस की धर्मसेवा


गुजरात के इडर शहर के पुलीस स्टेशन का बोर्ड, जिस पर गुजरात
पुलीस के एम्बलम के उपर लिखा है, धर्मसेवा



गुजरात में मोदी ने पुलीस को जमीन के दलालों की भी दलाल बना दी है, ऐसा हमने अमदावाद आए मानव अधिकार आयोग से कहा था. मगर हम गलत थे. गुजरात में संघ के प्रचारक ने पुलीस को सिर्फ जमीन माफीया की दलाल ही नहीं बल्कि धर्म सेवा में भी लगा दी है. गुजरात के इडर शहर के पुलीस स्टेशन पर कल हमने जो देखा उसकी तसवीर यहां रखी है.

हमारी गुहार पर मानव अधिकार आयोग ने गुजरात के पुलीस महानिर्देशक चित्तरंजनसिंह को जब ऐसे होर्डींग्स, बोर्ड्स निकाल देने के आदेश दिए, तब डीजी बता रहे थे कि ऐसे होर्डींग सिर्फ अमदावाद शहर में ही है, मगर यह इडर शहर के बोर्ड के बारे में डीजी का क्या कहना है? और इस बोर्ड में तो कोई यात्री टायर्स का इस्तहार भी है. और गुजरात पुलीस के एम्बलम पर लिखा है, 'धर्मसेवा'

पीछले दस साल से गुजरात पुलीस द्वारा किए गए कार्यों से इस धर्मसेवा का मतलब हम समज सकते हैं. गुजरात पुलीस के लिए धर्मसेवा का अर्थ है, मुसलमानों पर जवाबी कारवाई हो तब चुपचाप खडे रहेना, फेइक एन्काउन्टरों में निर्दोष मुसलमानों को मौत के घाट उतारना. गुजरात पुलीस धर्मसेवा का बहुत अच्छा अर्थ समजती है. धर्मसेवा का मतलब है, गांवों में दलितों पर अत्याचार के वक्त सवर्णों को साथ देना. धर्मसेवा का मतलब है, एट्रोसीटी एक्ट का कतई अमल न करना. धर्मसेवा का मतलब है, हिन्दुओं में त्रिशुल बांटनेवालों को उचित रक्षण देना. धर्मसेवा का मतलब है, मर्यादा पुरुषोत्तम नरेन्द्र मोदी के लिए वनवास (सोरी, जेलवास) तक झेलना.

सेक्युलर देश में पुलीस का कोई धर्म नहीं होता. पुलीस का काम है कानून की रखवाली. पुलीस को कोई धर्म से लेना देना नहीं है. गुजरात की पुलीस को मोदी ने कट्टरपंथ का जहर पीलाया है, इसका इससे बडा प्रमाण क्या होगा? हमारा पूरे देश के सेक्युलर लोगों से नम्र निवेदन है कि आप चंद मिनट निकालकर मानव अधिकार आयोग, गुजरात हाइकोर्ट के चीफ जस्टीस तथा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टीस को जरूर एक पत्र लिखें. आप अगर ऐसा सोचते रहें कि हमारे हाथ में सत्ता नहीं है, हम क्या कर सकते है या हमारे हाथ में सत्ता आएगी तब हम कुछ करेंगे तो मेरी बात ध्यान से सून ले. आप से बडा बेवकूफ कोई नहीं होगा.  


रविवार, 6 मई 2012

माइग्रन्ट विरुद्ध वाइब्रन्ट



'वाइब्रन्ट' गुजरात की चकाचौंध की जिस कहानी सांप्रत गुजरात के शासकों द्वारा बार बार दोहराई जा रही है, उस कहानी को अंजाम देने के लिए बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, उत्तरप्रदेश, राजस्थान के हजारों, लाखों 'माइग्रन्ट' मजदूरों ने अपनी जिंदगियों में कितना अंधेरा झेला है, और जिस 'पावर-सरप्लस' गुजरात की डींगे लगाई जा रही है, उस गुजरात की समृद्धि के पीछे झारखंड, छत्तीसगढ की कोयले की खदानों का निरंकुश उत्खनन कितना जिम्मेदार है, यह सवाल आज सूरत में बुलाए गए बिहार शताब्दी उत्सव के आयोजकों को पूछने जैसा है.

तथाकथित 'पावर-सरप्लस' गुजरात आज 18,000 मेगावोट बीजली पैदा करने की स्थिति में है, ऐसा 'पायोनियर' से बात करते हुए गुजरात के पावर-पेट्रोलीयम सचिव पांडीयन ने कहा. उसमें 13,500 मेगावोट बीजली थर्मल पावर स्टेशनों में बनती है. देश की 70 फीसदी बीजली थर्मल पावर स्टेशनों से आती है, जो बीजली पैदा करने के लिए कोयले का इस्तेमाल करते हैं. भारत में आज 267 अरब टन कोयला अभी भी जमीन में सुरक्षित है. इन में से ज्यादातर कोयला ओरीस्सा, छत्तीसगढ और झारखंड की खदानों में है. आज तक गुजरात के मांचेस्टर अहमदाबाद की टेक्सटाइल मीलों को चलाने के लिए इन्ही कोयले का इस्तेमाल हुआ. झारखंड अब तक बिहार में था और थर्मल पावर स्टेशन के लिए जरूरी कोयला बिहार में ही था, फीर भी बिहार में अब तक सिर्फ दो पावर स्टेशन्स बने और उनकी पावर जनरेशन केपेसीटी भी 50-60 मेगावोट और 80-90 मेगावोट ही है. (बिहार सोशीयो-इकोनोमीक रीव्यू-2011-2012). सच तो ये है कि ओरीस्सा, छत्तीसगढ और झारखंड की गरीबी के लिए गुजरात जिम्मेदार है. परीमल नथवाणी नामका रीलायन्स का दलाल झारखंड का एमपी है, जिसे झारखंड से कोई लेना देना नहीं है. एक गुजराती हो कर भी मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होता.  

नितिशकुमार के बिहार में तेंदुलकर कमीटी के निष्कर्ष अनुसार 54.5 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे है. गुजरात में बीपीएल परीवारों की तादाद कुल आबादी का 16.8 फीसदी हिस्सा है. हालांकि यह सरकारी आंकडा है, और उस पर संदेह किया जा सकता है, फीर भी बिहार की तुलना में गुजरात की आर्थिक स्थिति अच्छी है. गुजरात में 20,59,380 हिन्दीभाषी लोग बसते है. सूरत में उनकी जनसंख्या 5,78,255 है. पूरे गुजरात में इंट भठ्ठो में अपने परीवार के साथ काम करते मजदूरों का, अहमदावाद, राजकोट, सूरत जैसे शहरो में रात को दो बजे तक मटन-खीमा की प्लेटें साफ करनेवाले बिहारी बच्चों का, दक्षिण राजस्थान से बीटी कोटन के खेतों में काम करने के लिए बीकनेवाली लडकियों की इसमें कीसीने गणना नहीं की.       

मंगलवार, 1 मई 2012

सी. आर. पाटील: एक लीस्टेड जकात-चोर, सांसद



1994 में मैं सूरत में नवगुजरात टाइम्स के साथ जूडा. मेरी सेलरी थी रू. 3000. जसवंत रावल मेरा तंत्री था. गोरा, सुंदर, सोफीस्टीकेटेड, मृदुभाषी. पहेले वह जनसत्ता में था. उसकी उम्र शायद मुझ से ज्यादा नहीं थी, मगर वह मुझे आदर से नहीं बुलाता था. पीछली दो-तीन नौकरियां मैंने आत्म-सम्मान की खातिर छोड दी थी, इस लिए सूरत गया तब मुझे मालुम था कि मैं यह नौकरी ज्यादा दिन करनेवाला नहीं हुं.

नवगुजरात टाइम्स का मालीक सी. आर. पाटील था. काला चहेरा और सफेद वस्त्र. पाटील की सिर्फ पांच शब्द में पहेचान देनी हो तो ऐसा कहना वाजीब था. गुजरात समाचार के मालीक श्रेयांस शाह, संदेश के फाल्गुन पटेल या समभाव के भुपतभाई वडोदरीया को जिसने भी देखा होगा, वे जब पाटील को देखते तो उन्हे लगता होगा कि गुजरात के तंत्री-मालीको के खानदान में यह विचित्र आदमी कहां से आ गया है. (श्रेयांस-फाल्गुन के कार्य अच्छे नहीं है, मगर वे दिखने में प्रेझन्टेबल जरूर है.) पाटील को कुछ लोगो लीस्टेड जकात चोर के नाम से बुलाते थे और कुछ अखबारो में तो यह विशेषण बडे प्यार से छपता था. मुझे याद है, उस वक्त गुजरात समाचार के निवासी तंत्री मयुर पाठक, जो आरआरएस से जुडे हुए थे ऐसा कहा जाता था, वे सप्ताह में दो-तीन बार इस लीस्टेड जकात चोर के नाम से स्टोरीझ छापते रहते थे.

नवगुजरात टाइम्स के दरवाजे पर सीसीटीवी केमेरा लगे हुए थे. पहलीबार मैंने किसी अखबार के दरवाजे पर ऐसे केमेरा मैंने देखे थे. मुझे बहोत आश्चर्य हुआ था. मैंने मेरे साथी कर्मीओं को पूछा, तो सब मुश्कुराने लगे. मुझे कहा, कल जब सीआर आए तब दरवाजे पर खडे रहो, पुरा नजारा देखने को मिलेगा. सब समज जाओगे.

दूसरे दिन मैं दरवाजे से कुछ अंतर पर खडा रहा. थोडी देर में तीन गाडियां आई. पहली गाडी में एक आदमी बंदूक लेके बैठा था. तीसरी गाडी में भी दूसरा आदमी बंदूक लेके बैठा था. बीच वाली गाडी में से खुद सीआर उतरे. उनके साथ भी एक सुरक्षा कर्मी बंदूक लेकर चलता था. मैंने ध्यान से देखा तो सीआर ने अपने पेन्ट तले बुट के मोजे में भी एक रीवोल्वर छुपाके रखी थी. इस आदमी को इतनी सारी सुरक्षा की क्यों जरूरत पड रही है? यह सवाल मेरे दिमाग में उठा था.

बाद में मैंने जाना कि दरवाजे पर लगे केमेरा का कनेक्शन सीधा पाटील की ओफिस में रखे टीवी से जुडा है. पाटील हंमेशां ओफीस में बैठे बैठे इस टीवी पर नजर रखता है. दरवाजे पर कोई आदमी आता है तो उसे तुरन्त मालुम पड जाता है. मेरे पत्रकार दोस्तों ने मुझे जब यह कहा, तब मेरा ह्रदय कांप उठा. वे कहते थे, सूरत में हर महिनें करीब 10-12 करोड की जकात चोरी होती है. 10-12 गेंग इस धंधे में लगी है. पाटील इन सब गैंग का डोन है. यह बात शायद गलत भी होगी. पाटील बेचारा सीधा सादा गृहस्थ भी होगा. मगर इसे इतनी सारी सुरक्षा की जरूरत पडती है, तो इस के लिए उसका अन्डरवर्ल्ड का कनेक्शन भी जिम्मेदार होगा ऐसा नहीं मानने का कोई कारण नहीं था. वह सरकार के भ्रष्टाचार का पर्दाफास करनेवाला कोई व्हीशलब्लोर तो नहीं था, जिसके सर पर मौत मंडराती हो.

पाटील काशीराम राणा का खास आदमी था. सूरत में बीजेपी को मजबूत बनाने में उसके चहेरे ने काफी योगदान दिया होगा. भारत माता को रक्षण के लिए ऐसे खास प्रकार के आदमियों की जरूरत है. सत्ता के बदलते समीकरणों ने पाटील को मोदी-भक्त बनाया है. अहमदाबाद में बिन-गुजराती कांग्रेसियों के खिलाफ पर्चे बांटने वाली बीजेपी सूरत में इस निरक्षर बिन-गुजराती को सांसद बनाने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती. गुजरात की अस्मिता में दरार नहीं पडती. पाटीलसाब मोदी-विरोधी नहीं है, तो गुजरात-विरोधी भी नहीं है.

पाटील आज सूरत में मोदी के लिए 50,000 बिहारियों का संमेलन बुला रहा है. गुजरात के स्थापना दिन पर बिन-गुजरातियों का संमेलन मोदी की देशभक्ति का अच्छा प्रमाण होगा. जिस बिहारियों के खिलाफ मुंबई में राज ठाकरे लोगों को भडका रहा है, उसी बिहारियों को गुजरात में कैसे प्यार से आवकार दिया जाता है. माइग्रन्ट बिन-गुजराती गुजरात के आर्थिक विकास में बडा योगदान दे रहे हैं, ऐसा कहने का मोदी को एक ओर मोका मीलेगा. गुजरात के इंटो के भठ्ठों में बिहार-झारखंड के दलित मजदूरों के साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार होता है, उसके बारे में दो शब्द भी गुजरात के अखबारो में नहीं आएगा, इस अखबारों में एक अखबार का मालीक नवसारी का सांसद सी.आर. पाटील भी है.

बुटलेगरों के दोस्त, सस्पेन्डेड कोन्स्टेबल, सी. आर. पाटील की कुंडली लिखते हुए ता. 21 मार्च, 2009 का इन्डीयन एक्सप्रेस कहता है, "Tainted cop to PSU boss to wannabe MP, it has been quite a journey for Chandrakant R Patil (55), BJP candidate for Navsari this Lok Sabha polls. Patil was suspended from the police for his alleged involvement in illegal liquor trade in dry Gujarat, and even jailed for failing to repay hefty loans to a cooperative bank. But now, he will make his debut at the hustings this year.

His story begins after he joined the Surat police in 1975 as a constable. He first courted trouble after a liquor hoard was recovered from a bootlegger’s house in Palsana taluka in 1978 and his name cropped up in the police records as one of those involved.

The same year, another prohibition case was registered against him at the Songadh police station. Patil was arrested by the Surat police Task Force and was finally suspended for six years from the job.

He remained clear of more trouble for a while, though police sources allege that his dalliance with the illegal liquor trade continued. Patil resumed his police job in 1984 and soon invited another suspension: this time for trying to form a police union. Later, he allegedly came into contact with the then-rampant octroi evasion racket, with the backing of some textile mill owners. The Surat Municipal Corporation charged a case of octroi evasion against him in 1995. Meanwhile, politics beckoned, and Patil joined the BJP in 1990. In four short years, he became the Surat district president."

छ महिने के बाद मैंने जब नौकरी छोडी तब मेरा एक महिने का पगार बाकी था. पाटील के पास मेरे रू. 3000 अब भी उधार है. पाटील फेक्ट्री एक्ट का पालन नहीं करते थे. आज पहली मे के मजदूर दिन पर गुजरात का एक पूर्व पत्रकार बडे दुख से इस बात को याद करता है. जय जय गरवी गुजरात.