मंगलवार, 12 जून 2012

कीडा और मलकुंड का डायनेमिक्स

उन्हे कीडे से नफरत है, मगर मलकुंड की दोस्ती छोडना नहीं चाहते. केशुभाई पटेल, काशीराम राणा, सुरेश महेता जैसे गुजरात बीजेपी के फोसिलाइज्ड लीडरों से ले कर नीतिश कुमार, शरद यादव तक के लोगों की यही हालत है. मोदी से बैर, बीजेपी से प्यार. इनका हम क्या करेंगे, यार?

रविवार, 10 जून 2012

गुजरात के मर्यादा पुरुषोत्तम रुपाला


वत्स,  ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ये सब ताडन के अधिकारी ऐसा
 कहने के लिए तुम हमारे अभिनंदन के अधिकारी हो, रूपाला को शाबाशी
देते हुए स्वामिनारायण संप्रदाय के स्वामीबापा

भारतीय जनता पक्ष के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम रुपाला की एक टीप्पणी ने गुजरात के दलितों को उत्तेजित कर दिया है. यह टीप्पणी के पीछे क्या है? गुजरात बीजेपी में मोदी और केशुभाई पटेल के बीच कब से महाभारत चल रहा है. केशुभाई पटेल और उनका खेमा मोदी को आनेवाले चुनाव में परास्त करने के लिए पूरे गुजरात के शक्तिशाली पटेल समुदाय को आह्वान कर रहे है. उनका कहेना है कि पटेल समाज मोदी के शासन में भयभीत है. जिस समुदाय के पांच से ज्यादा मंत्री मोदी की केबिनेट में है, वह समाज गुजरात में भयभीत कैसे हो सकता है?

ये वही पटेल समाज है, जिसका एक भी मंत्री 1981 में माधवसिंह सोलंकी के मंत्रीमंडल में नहीं होने के कारण पूरा समुदाय कांग्रेस से विमुख हो गया था. (वैसे एक वाक्य में यह सारी कहानी हम नहीं कह सकते, इसे हम अलग लेख में डील करेंगे, क्योंकि इस के पीछे आरक्षण की राजनीति भी है) पटेलों की आबादी गुजरात में बीस फीसदी है. मीडीयावाले उनकी तादाद बढा चढा कर पचीस फीसदी बता रहे हैं. पटेलों की ताकात उनकी एकता में है. पी फोर पी. पटेल फोर पटेल. यह उनका स्लोगन है. सरदार वल्लभभाई पटेल, ढेबरभाई, एच. एम. पटेल जैसे नेताओं ने इस समुदाय को ग्लोबल गुजराती बना दिया है. 1981 के बाद यह समुदाय बीजेपी के समर्थन में तथा हिन्दुत्व के अभियान में पूरी ताकात से जूट गया था. और उसके चलते केशुभाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे.

2001 में गुजरात में पहले बडा भूचाल आया, बाद में राजकीय भूचाल आया. 2002 में मोदी मुख्यमंत्री बने. जिस समुदाय ने गुजरात में हिन्दुत्व (अर्थात दंगा फसाद) फैलाने में बडी भूमिका नीभाई थी, उसके मुखिया केशुभाई को राजकीय वनवास मीला. पटेल समुदाय के लिए यह बडा सदमा था, मगर मोदी ने अपनी केबिनेट में ज्यादा से ज्यादा पटेलों को स्थान देकर उन्हे संतुष्ट कर लिया था. गुजरात में हिन्दुत्व सिर्फ सत्ता हथियाने की विचारधारा मात्र है. मोदी की केबिनेट में पीछडों का यानि बक्षी पंच, जिसकी 40 फीसदी आबादी है, उसका एक भी मंत्री नहीं है.

फीर भी अब केशुभाई पटेल और कांग्रेस के संमेलनों मे पटेल समुदाय बडी संख्या मे आ रहा है. पूरे गुजरात पर कब्जा कर लेने के बाद पटेल समुदाय अब कांग्रेस की ओर चलता दिखाई रहा है, क्यों? पीछले एक साल से 2002 के दंगों के मुकदमों का नतीजा आ रहा है. ओड, महेसाणा के नरसंहारो में पटेलों को सख्त सजा मीली है. और भी केसों का नतीजा आनेवाला है. गुजरात के दंगो में दलितों ने मुसलमानों पर चारों ओर हमला किया ऐसा नेशनल केम्पेन कुछ लोगों ने चलाया था. मगर अब सच्चाई सामने आ रही है. जो गुनहगार है, उनकी लिस्ट देखने से पता चलता है, कि दलितों के खिलाफ जानबूजकर केम्पेन चलाया गया था. अब जब पटेलों को उनके गुनाहों की सजा मीलने लगी है, तब उनका राजकीय नेतृत्व हडबडा गया है. अगर मोदी हार गया तो गुजरात की राजनीति में पटेल वही व्यूहात्मक स्थान बना पाएंगे, जैसा अभी है? पटेलों के सामने एक ही सवाल है. मोदी रहे या ना रहे, एक साल बाद गुजरात के मंत्रीमंडल में हमारा राजकीय प्रभुत्व यथावत रहेना चाहिए.

इसी हडबडाहट में रूपाला ने बीजेपी के कार्यकर्ता संमेलन में तुलसीदास की चोपाई "ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ये सब ताडन के अधिकारी" कहते हुए कार्यकर्ताओं को केशुभाई के गुट को सबक शिखाने का आह्वान किया. तुलसीदास रामभक्त थे. राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे. मर्यादा पुरुषोत्तम वह होता है, जो सभी वर्णों को, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र को उनके वेद-प्रमाणित कर्मों के अनुसार जीना शीखाता है. अगर कोई शंबुक इस मर्यादा का उल्लंघन करता है तो उस की कत्ल करना यह मर्यादा पुरुषोत्तम का काम होता है. और यहां तो खुद पुरुषोत्तम रुपाला है. वह अपने आप को राम ही समजता होगा. यह रुपाला खुद शुद्र है. मगर उसने हिन्दुत्व का दारु इतना पीया है कि वह अपना शुद्रत्व भुल गया है. वह जिसके खिलाफ बकवास कर रहा है, वह केशुभाई भी शुद्र है, केशुभाई ने भी हिन्दुत्व का दारू इतना पीया है कि वह भी भुल गये है कि वह शुद्र है. अब शुद्र ने शुद्र को गाली दी है. और यह दोनों शुद्र क्लासीक सेन्स में शुद्र ही नहीं है, इनकी आर्थिक ताकत इतनी बडी है कि वह ब्राह्मणों पर भी राज कर रहे है.

गुजरात के बाकी बचे सच्चे शुद्र है इसका क्या हाल है? ठाकोर पटेल के बाद सब से बडा समुदाय है. उनकी भी बीस फीसदी आबादी है. वे रोयल ब्लड नहीं है, दरबार, राजपुत नहीं है, उन्हे भी बीजेपी ने दरबार, क्षत्रिय का दारु पीलाकर हिन्दुत्व की तलवार हाथ में दे दी है. कांग्रेस भी उन को क्षत्रिय संमेलन के बेनर तले उनको इकठ्ठा कर रही है. कांग्रेस को ठाकोर की आइडेन्टीटी उजागर करने में कोई इन्टरेस्ट नहीं है. रबारी, भरवाड, मालधारी नाम का एक दुसरा समुदाय है, काफी उर्जा है उन में, मगर उन्हे भी गोवध के नाम पर कसाईओं के पीछे बीजेपी ने लगा दिया है.

ये सारे शुद्रों को रूपाला ने गाली दी हैं, उन्हे उसका पता तक नहीं है, वे सो रहे है, और हमारे दलित, जो अतिशुद्र है, वे सारी लडाई अपने कंधे पर ले कर उछल रहे हैं. हमारी हमेशा यही नियति रही है. पीछडों के आरक्षण की लडाई भी हम लडते हैं और वे हमें ही गालियां देते रहते हैं. कुछ लोग हम में ज्यादा बुद्धिशाली है, ज्यादा संवेदनशील है. वैसे यह अच्छी बात है, मगर इससे हमारा कोई भला नहीं होनेवाला. हमें मैदाने जंग में कुदने की कोई जरूर नहीं है. अन्य शुद्रों को जंग में उतारना है. अगर वे वैसा नहीं करते तो क्रान्ति के लिए थोडा इंतजार और सही.     
    
- राजु सोलंकी

बुधवार, 6 जून 2012

गुजरात को लूंटनेवालों के वकील अरूण जेटली


गुजरात के वडोदरा शहर की उस मीटींग में मोदी के साथ जेटली,
जहां उसने कहा था कि हम मोदी को प्राइम मीनीस्ट बनाना
चाहते हैं.


सर्वोच्च अदालत का करोडपति वकील, बीजेपी के वडाप्रधान पद के दावेदार मोदी का क्राइसीस मेनेजर तथा सारस्वत ब्राह्मण अरूण जेटली गुजरात के 10,400 परीवारों की बरबादी के लिए जिम्मेदार है, जिन के करीबन रू. 1100 करोड केतन पारेख नाम के बनीये ने लूंट लिए थे. सारस्वत ब्राह्मण सर्वोच्च अदालत में बनीया का वकील था और उसको जमानत दिलवाई थी. 11 साल पहले केतन पारेख ने अमदावाद की माधवपुरा मर्केन्टाइल को-ओपरेटीव बेन्क (माधवपुरा बेन्क) के रू. 1100 करोड का स्केंडल किया था. अब केतन पारेख और उसके सहयोगीओं से रू. 1100 करोड वापस लाने के प्रयास विफल हो जाने के बाद रीज़र्व बेन्क ने माधवपुरा बेन्क का लायसन्स केन्सल कर दिया है और अब बेन्क का लिक्विडेशन हो जाएगा.

गुजरात का मीडल क्लास क्यों अभी भी जेटली-मोदी से संमोहित है, यह मुद्दा महान संशोधन का है. अभी तो हम जेटली से इतना पूछेंगे कि केतन पारेख ने तुम्हे सुप्रीम में लडने के लिए जो भी फीज़ दी थी वह तुम जाहिर करोगे? या यह सारा काम देश की सेवा में हुआ है? बहर हाल, हम इतना दावे के साथ कह सकते है कि मोदी के मंत्रीमंडल में जेटली देश के कायदा मंत्री जरूर बनेंगे और उन की कृपा से केतन पारेख जैसे लूंटेरे वैश्विक बाज़ारों में अरबों का गोटाला करेंगे. बोलो भारत माता की जय.

रविवार, 3 जून 2012

गांधी, संघ परीवार और धर्मांतर

भयानक अत्याचारों के शिकार दलित ख्रिस्ती.


"ख्रिस्ती धर्म की तरफ श्री गांधी का विरोध अत्यंत प्रसिध्द है, ...... गांधी कहते है, "मैं ऐसा मानता हूँ कि हरिजनों का विशाल समूह और उसी तरह भारतीय मानव ख्रिस्ती धर्म के प्रस्तुतीकरण को समझ नहीं सकते।... वे (हरिजन) दो चीजों के गुणदोष की तुलना नहीं कर सकते, जितनी गाय कर सकती है। हरिजनो के पास दिमाग नहीं है, बुद्धि नहीं है, ईश्वर और अनिश्वर के बीच फर्क समझने की शक्ति नहीं है"।
- डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर

मैंने जब बाबासाहब का यह उद्धरण गुजरात के ख्रिस्ती दोस्तों को बताया, तब उनको ताज्जुब हुआ था कि गांधी ऐसा कैसे कह सकते है. वाकई में गांधी ने ऐसा कहा है. और समजने की बात यह है कि गांधी पक्के हिन्दु थे, धर्मांतर के कटु आलोचक थे. उन्हे मालुम था कि कांग्रेस की 'हरीजन' वोटबेन्क हिन्दु धर्म छोड देगी तो इस देश में कांग्रेस का सत्यानाश निकल जाएगा. गांधी को धर्मांतर के प्रति इतनी एलर्जी थी कि वे "हरिजनों के पास दिमाग नहीं है, बुद्धि नहीं है, ईश्वर और अनिश्वर के बीच फर्क समझने की शक्ति नहीं है," ऐसा आत्यंतिक विधान करते हैं. आप मेरी बात से सहमत नहीं है, तो आप बेवकूफ है, यही गांधी का तर्क था. गांधी फासीस्ट थे.

बीजेपी और आरएसएस इस अर्थ में गांधीवादी है. गोडसे ने गांधी को मार दिया और उनको शहीद बना दिया. मैंने कई मुसलमानों को इसका मातम मनाते हुए देखा है. वे लोग इसी बात को ले कर गांधी और आरएसएस में फर्क करते हैं. उन्हे समज लेना चाहिए कि स्टेन्स को जिंदा जलानेवाले इसी गांधीवादी मानसिकता से ग्रस्त थे, फर्क इतना था कि वे हिंसक थे. 

जयललिता और नरेन्द्र मोदी के धर्मातंर विरोधी कानून का वैचारीक स्रोत भी यही गांधीवाद है. गुजरात में नरेन्द्र मोदी से बडा कोई गांधीवादी नहीं है. बहुत कम लोगों को इस बात का पता है कि गुजरात में मोदी के पहले कांग्रेस ने धर्मांतर विरोधी विधेयक तैयार किया था, जो संयोगवशात कानून नहीं बन सका था. मैंने ख्रिस्ती मिशनरियों की संस्थाओं में गांधी के फोटो देखें है, अंबेडकर के नहीं, ख्रिस्ती मिशनरी जितना जल्दी हो सके बाबासाहब की विचारधारा समज ले, इसी में उनका और वे जिन के लिए काम कर रहे है उनका कल्याण है.