बुधवार, 29 अगस्त 2012

रामकथा और तम्बाकु






मिराज तम्बाकु की उत्पादक कंपनी मिराज ग्रुप के मालिक मदनलाल पालीवाल ने लाखो रूपिया खर्च करके मुरारी की रामकथा के इस्तेहार गुजराती दैनिकों में दिये. दो दिन पहले लोगों को तम्बाकु-गुटखा छोडने की अपील करनेवाले दिव्य भास्कर ने पालीवाल की पूरे पेइज की एडवर्टाइझ सतत पांच दिन तक छापकर लाखो रूपिया कमाया. मनहर जमील का यह फोटो कल रामभक्तों के घर में दीवार पर होगा और रामभक्त मुंह में मिराज तम्बाकु चबाते चबाते दशरथ की तरह उन्हे भी चार पत्नियां का ऐश्वर्य मील जाय ऐसे दिवास्वप्न देखते रहेंगे.

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

थीन्क ग्लोबली, एक्ट ग्लोबली एन्ड नथींग वील हेप्पन लोकली

19 अगस्त, 2012 गुजरात के साणंद में आंबेजकर दलित परिषद के 
कार्यक्रम में कांचा इलैया, डॉ. नीतिन गुर्जर, डॉ. श्यामल पुराणी, बाबु 
पेन्टर, मोझेझ परमार, बाबुभाई कतपरा तथा राजु सोलंकी

ओस्मानीया युनिवर्सीटी के प्रो. कांचा इलैया अपनी किताब 'व्हाई आइ एम नोट हिन्दु' से ज्यादा प्रसिद्ध है. उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि से ऐसा लगता था कि वह दलित है, मगर उन्हो ने बताया कि वह गडरीया (गुजराती में भरवाड) समुदाय से है, जो आंध्र प्रदेश में ओबीसी है. कांचाजी के खयाल काफी रसप्रद है. वे कहते है, ''देश में दूध के उत्पादन में भैंस का प्रदान 70 प्रतिशत है. सिर्फ हिन्दु ही नहीं, बल्कि हिन्दु के देवी-देवता भी भैंस का दूध पीते हैं. फिर भी गाय को माता क्यों कहते है?'' कांचाजी का तर्क यह है कि भैंस काली है और गाय सफेद, इसलिए गाय को आर्यलोग पसंद करते थे, जबकि भैंस का काला रंग अनार्यों का रंग था. अच्छा खासा फैटवाला दूध देने के बाद भी बेचारी भैंस को माता नहीं कहा जाता. 

कांचाजी गुजरात के किसी भी दलित साहित्यकार, कर्मशील को जानते नहीं थे, सिवाय के एक एनजीओ. हमने उनको जोसेफ मेकवान, नीरव पटेल, साहिल परमार, दलपत चौहाण वगैरह साहित्यकारो के बारे में बताया. जोसेफ मेकवान की किताब 'आंगळियात' राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित है, फिर भी कांचा उन्हे जानते नहीं थे. हमने कांचाजी को वालजीभाई पटेल के बारे में बताया, जिनकी संस्था काउन्सील फोर सोशल जस्टीस ने एग्रीकल्चरल लेन्ड सीलींग एक्ट के तहत दलितों को कागज पर बांटी गई जमीन के वितरण का अच्छा काम किया है, जिसकी पूरे देश में कोई मिशाल नहीं है. अभी मुझे एक दोस्त ने बताया कि कांचा जोसेफ मेकवान वगैरह साहित्यकारों के साथ डरबन युएन की कोन्फरन्स में थे. लगता है, हम एक ही देश में एकदूसरे से परिचय बनाने के बजाय आंतरराष्ट्रीय परिषदो के पीछे ज्यादा समय व्यतीत करते है. थीन्क ग्लोबली, एक्ट ग्लोबली एन्ड नथींग वील हेप्पन लोकली.        

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

बीजेपी की आंबेडकर सम्मान यात्रा पर पथराव


गुजरात के वडोदरा शहर के बकरावाडी क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी की आंबेडकर सम्मान यात्रा पर पथराव होने से भगवा-कर्मियों में मच गई भगदड. शासक पक्ष के करतूतों से नाराज लोग, जिनमें दलित भी सामेल है, अब बाबासाहब के नाम पर कोई नौटंकी बरदास्त करने के लिए तैयार नहीं है. इस पथराव में बीजेपी के धारासभ्य को सिर पर पथ्थर लगने से चोट पहुंची है, ऐसा वृतांत है.

राज ठाकरे - मुंबई हिंसा पर राजनीति



कल राज ठाकरे ने कहा की ईंदू मिल की जगह पर क्या बंगला बनाना है?

चलिये, इस बात को पुरी तरह समझते है.

सबसे पहले राज ठाकरे का इतिहास जान लेते है.

राज ठाकरे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाजसुधारक प्रबोधनकार ठाकरे का पोता है. जैसे राज के चाचा ने अपने परमपूज्य पिताश्री के आदर्शो को नही माना, वैसे ही राज ने अपने दादा के आदर्शो को नकार दिया.

राज ठाकरे कायस्थ जाती से आता है. ब्राम्हणो का मानना है कि यह जाती ब्राम्हण पुरुष तथा शुद्र स्त्री के मिलन से पैदा हुई है, इसलिये वह कायस्थो को ब्राम्हण नही मानते. लगभग 13 वी सदी से ब्राम्हण तथा कायस्थो के बीच यह झगडा चल रहा है, जिसका हश्र हमेशा कायस्थो के अपमान के रूप में सामने आया है. कुल मिलाकर कायस्थ और ब्राम्हण एकदुसरे के दुश्मन है, इस सच्चाई से प्रबोधनकार ठाकरे ने सबसे पहले सभी कायस्थो को अवगत कराया था. इसके बावजूद उनके बेटे ने सारी जिंदगी ब्राम्हणो की मनुवादी विकृती का बोझ ढोने में ही धन्यता महसूस की. राज भी उसी राह पर चलता है, क्योंकि आज भी अधिकांश शुद्र (आज की भाषा में ओबीसी) ब्राम्हणवाद का बोझा ढोते है, तो शुद्रो (ओबीसी) की लुट का कुछ हिस्सा ब्राम्हणो के साथ इन्हे पाने का मौका मिल जाता है, इसलिए वह इस शोषणकारी व्यवस्था का समर्थन करते है.

राज ठाकरे का नाम तब चर्चा में आया था जब उसने 421 करोड रुपये खर्च कर मुंबई की मशहूर कोहिनूर मिल एक ब्राम्हण शिवसेना नेता मनोहर जोशी के साथ खरीदी. खुब हो हल्ला हुआ की राज के पास इतने पैसे कहां से आए, कोई जवाब नही मिला. जल्द ही इस 421 करोड के 1200 करोड हो गए. कैसे हुए, कोई नही जानता.

कहने के लिये राज ठाकरे चित्रकार है, लेकिन उसकी कोई भी पेंटींग एम एफ हुसैन की तरह करोडो में नही बिकी. फिर भी उसके पास इतना पैसा कहां से आया, किसी को नही पता.

पुना का रमेश किणी नाम का एक शख्स 1996 की एक शाम एक थिएटर में मृत अवस्था में पाया गया. वह घर से सब्जी लाने निकला था. रमेश किणी का पुना में घर था, जिसे गिराकर मुंबई का जाना माना बिल्डर और राज ठाकरे का जिगरी दोस्त लक्ष्मीकांत शाह वहां पर कुछ और बनाना चाहता था. बार बार धमकाने पर भी जब वह नही माना तब उसने "आत्महत्या" कर ली. जी हां, रमेश किणी ने आत्महत्या कर ली, कमसे कम पुलिस तो यही कहती है, क्योंकि उसका पोस्टमॉर्टम नही किया गया. 15 साल तक रमेश किणी की विधवा बिवी न्याय की  गुहार लगाती रही, आखिर में बेचारी फटेहाल मर गई. किसी को पता भी नही चला.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है की राज ठाकरे का असली धंधा लोगो की जिंदगीयो के कैनवास पर मौत के रंग उंडेलना था. जी हां, राज ठाकरे का असली धंधा अपहरण, फिरौती, सुपारी लेना, घर खाली करवाने का है. मतलब वह सफेदपोश डॉन है.

राज एक कुशल निर्देशक है. उसके पास मैनेजमेंट करनेवाले लोगो की एक टीम है, जो राजनिती को एक धंधा समझती है, धंधा फायदा दिलाए इसलिये यह लोग तरह तरह के सेल्स प्रमोशन करते रहते है, जिसकी एक मिसाल है राज का कल का ताना,"ईंदू मिल में क्या बंगला बनाना है?" हर बात काफी सोच समझकर बोली जाती है, की जाती है, पुरी योजना के साथ. क्या फायदा हो सकता है, क्या नुकसान हो सकता है, इस बारे में पुरी संभावनाए सोचकर.

राज ठाकरे के सभी पार्टीयो के नेताओं से काफी अच्छे रिश्ते है. कोहिनूर मिल के विवाद में उसे कृपाशंकर ने बचाया, रमेश किणी के विवाद में बाल ठाकरे, छगन भुजबल, नारायण राणे ने बचाया. हर आंदोलन विपक्ष के साथ नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर चलाया जाता है, जिससे दोनो को फायदा हो. राज ठाकरे मारने का नाटक करता है और सत्ता पक्ष रोने का, समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है. आज तक एक भी समस्या का अंतिम समाधान राज ठाकरे ने नही निकाला है, क्योंकि अगर समस्याए सुलझती है तो राज के पास कोई काम नही बचेगा, उसके पास मुद्दो की कमी है.

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर भी मराठी थे, लेकिन उनका कहना था की वो प्रथमत: भारतीय है और अंतत: भी भारतीय है. और आज ये एक राज है, जो भारतीय होने से ज्यादा मराठी होने में फक्र महसूस करता है. आप ही सोचे आपको क्या बनना पसंद है.

अगर अपने सामने कोई दुश्मन हो, और वो भी संख्या में कम और कमजोर हो, तो ऐसा दुश्मन आपको अच्छा लगता है. क्योंकि वह आपकी जीत के अहंकार को पुरा करने का सबसे अच्छा और सस्ता साधन होता है. महाराष्ट्र के दलित भी राज ठाकरे को अपने दुश्मन लगते है, वही तस्वीर वह अपने भक्तो के सामने पेश करता है. दलित-मुस्लिमो का काल्पनिक भय दिखाकर संपुर्ण शुद्र (ओबीसी) समाज का ध्रुवीकरण राज अपनी ओर करना चाहता है. आपस में झगडते दलित राज ठाकरे को आसान निशाना लगते है. उनके आदर्श पर ताने कस कर वह तीन बाते कर रहा है.

1-
दलितो के आत्मविश्वास पर चोट
2-
बदनाम हुए तो क्या हुआ - नाम तो हुआ की तर्ज पर अब कमसे कम अपने दुश्मन के तौर पर महाराष्ट्र के दलित राज ठाकरे को सामने रखेंगे, जो कि अब तक शिवसेना और बाल ठाकरे थे.
3-
अब तक महाराष्ट्र के दलित राज ठाकरे को गिनते नही थे. उसे पता चल गया था की उसकी प्रादेशिक पार्टी में दलित नही आने वाला, तो उनसे सीधी दुश्मनी मोल लेकर बाकी वर्गो को साथ लेने में उसे फायदा नजर आया.

एक सबूत देता हूं.

बाहरी लोगो के विरोध का दिखावा करनेवाले राज ठाकरे ने सिर्फ सब्जीवाले, रिक्षावाले या ऐसे ही सामान्य व्यवसाय करने वालो को ही मारा पीटा है. आज तक कोई भी ऐसा उदाहरण नही है कि कृपाशंकर सिंह जैसे कभी सब्जी बेचनेवाले और राजनिती का धंधा कर अब अरबपति हो चुके लोगो को उंगली भी लगाई हो, उल्टे मुसीबत में पडने पर उन्ही की मदद ली.

आज राज को पुलिसवालो पर दया आ रही है. एक वक्त था जब डंडे पडते थे तब यही पुलिसवाले उसे अपने दुश्मन लगते थे, वह कहता था, मेरी सत्ता आने दो, सबको सबक सीखा दूंगा. राज जैसे ही कुछ धंधेवाले नेता मुस्लिम समाज में ही है, भावनाओ को भडकाए रखने पर ही जिनकी राजनिती जिंदा रहती है, उनके साथ राज की मिलीभगत हो यह असंभव नही, कमसेकम राज का इतिहास तो यही कहता है.

दंगे वाली जगह से एक बांगलादेशी पासपोर्ट मिला है. क्या कोई चोर जानबुझकर चोरी की जगह अपना पहचान पत्र छोड जाता है? की आओ भाई, मुझे पकडकर ले जाओ. मतलब, फिर वही इवेंट मैनेजमेंट...टीम वर्क...

राज ठाकरे ने सबसे पहले अपनी सीमा तय कर ली है. उसे महाराष्ट्र से बाहर जाना नही है. वह भावनाओ का माफिया है, नेता से ज्यादा अभिनेता है. आजकल उसका धंधा माफिया की तरह भावनाओ का व्यापार करना है. मराठी के लिये राज का प्यार महज एक दिखावा है. सबूत?...... मराठी-मराठी चिल्लानेवाले राज के बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढते है.

इसकी पार्टी का नाम महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना है, जो कुछ नया निर्माण तो नही करती, केवल विध्वंस करती है.

अपनी प्रसिद्धी के लिये लालायित राज और टीआरपी के लिये पागल मिडीया उस कामलोलुप प्रेमी जोडे की तरह है जो मिलन के लिये कोई भी हद पार कर सकते है. मिडीया के बिना राज कुछ कर नही सकता. और अगर राज कुछ करे या कहे तो मिडीया के दो-चार दिन खाने-पीने का प्रबंध हो जाता है. उसके अगर 3-4 गुंडे भी कोई आंदोलन (?) या तोडफोड करे तो भी वहां मिडीया हमेशा साथ होता है, और दुसरी ओर हजारो लोग भी हो, किसीके जीने मरने का सवाल हो तो भी मिडीया का कोई काला कुत्ता वहां हाल पुछने नही जाता.

अब यह सोचिये की आखिर राज की ऐसा कहने (ईंदू मिल) की हिम्मत कैसे हुई, क्या ऐसा कहने के लिये क्या वही जिम्मेदार है?

1957
के चुनावो में राष्ट्रीय स्तर पर चौथे नंबर पर रहने वाली पार्टी के नेताओ ने आज उसके लगभग 43 राष्ट्रीय (?) टुकडे कर दिये है. जो खुद के घर की रक्षा न कर सके, उसकी बाहर इज्जत नही होती. इसलिये आज राज ठाकरे जैसे डॉन की हिम्मत होती है, विश्वपुरुष के बारे में अपमानजनक बाते बोलने की, तो इसके लिये वह कम जिम्मेदार है, असली जिम्मेदार है वह बिकाऊ नेता, जो अपने छोटे छोटे स्वार्थो के लिये मनुवादीयो के हाथो की कठपुतली बन गए.

ठाणे मनपा में जब शिवसेना ने बहुजन समाज पार्टी को स्थायी समिती का अध्यक्षपद देने का प्रस्ताव रखा, तब राज ने कहा,"यहां क्या युपी की पार्टी फैलाओगे?" आखिर शिवसेना के सामने झुककर उसने बसपा को अध्यक्षपद नही मिलने दिया. क्योंकि उसे बसपा में असली खतरा नजर आता है.

तो अब क्या करें?

इस अपमान को याद रखिए, लेकिन अपना पुरा ध्यान फिलहाल अपने राष्ट्रीय पक्ष को मजबूत बनाने में लगाए. बाबासाहब ने हमे रक्तहीन क्रांति का माध्यम दिया है ..... चुनाव. आने वाले विधानसभा चुनावो में ऐसी जान झोककर काम किजिए कि इसकी हेकडी निकल जाए. आपके गाली गलौज से उसे कुछ फर्क नही पडनेवाला, उसका तो मकसद यही है कि अच्छे बुरे तरीके से वो आपके जहन में रहे. इसलिये ध्यान में रखिए, आपकी गालियां उस तक पहुंचेगी भी नही. हां, कुछ देर तक फेसबुक पर विहरने वालो का मनोरंजन हो जाएगा, क्योंकि यह दुनिया भी जातिवादियों से भरी पडी है. इन जातीवादियों को फेसबुक के अपने सपनो में छोडकर अपने एक मात्र असली स्वाभिमानी राष्ट्रीय संघटन बहुजन समाज पार्टी को मजबूत बनाए. किसी भी तरह के भावनात्मक बहकावे में आकर कुछ ऐसा ना करे, जिससे परोक्ष या अपरोक्ष रुप से जातिवादी राज ठाकरे को फायदा हो. मैं आपसे यह बात इसलिये कह रहा हूं की राज की इस महाराष्ट्रधर्म की घटिया राजनिती के छलावे में कुछ साल पहले बेचारा राहुल राज नाम का जवान लडका बुरी तरह फंस कर अपनी जान गंवा चुका है. राज की निती के विरोध में उसने एक बस को अगवा कर लिया था. हालांकी, उसने सारे यात्रियो को जाने दिया और वह अकेला ही पिस्तौल के साथ था, गोली चलाने की उसकी कोई मंशा नही थी. उसे अगर किसी को मारना होता तो वह बस यात्रियों में से किसीको मार देता. लेकिन उसने ऐसा नही किया. इसके बावजूद पुलिस ने उसे मार डाला. इन्ही एहसानों को याद करते हुए राज आज कल पुलिसवालों की तारीफो के पुलिंदे बांधता घुमता है.

ब्राम्हणो से एक गुजारिश है, अब तो वह मान ले कि कायस्थ भी ब्राम्हण है, वह भी पक्के ब्राम्हण. क्योंकि ब्राम्हणो की मनुवादी व्यवस्था कायम रखने के लिये जिस तरह से पुरा ठाकरे परिवार लगन से काम करता है वैसी लगन खुद ब्राम्हण भी नही दिखा सकते. बस बेचारे प्रबोधनकारजी को उस सुची से दुर रखिए.

मेरे लिये भी दुआ किजिए दोस्तो, इतना सब लिखने के बाद कही मुझे भी रमेश किणी की तरह "आत्महत्या" ना करनी पडे, या राहुल राज की तरह मुझे भी खतरा मान कर मेरा एनकाऊंटर ना हो जाए.

डॉन राज ठाकरे का शुक्रिया, तुम्हारी वजह से काफी दिनो से दबी बाते दुनिया के सामने लाने का अवसर मिला, जय भिम...!

सचिन म्हैसकर
महासचिव-भाईचारा कमेटी,
वर्धा विधानसभा,
जिला-वर्धा,महाराष्ट्र
मोबाईल-9665950749
email-sachin_mhaiskar@rediffmail.com