सुबह से बात हो रही है. फासीवाद क्या है? मैं कोई बडा प्रोफेसर नहीं हुं, मगर
एक वाक्य में आप को बताउंगा कि फासीवाद क्या है? गुजरात में मुसलमानों की आबादी
कितनी? दस फीसदी. गुजरात विधानसभा में 182 धारासभ्य है. दस फीसदी के मुताबिक
विधानसभा में मुसलमानों के 17 धारासभ्य होने चाहिए. अभी कितने है? सिर्फ तीन. अब
में दो वाक्य बोलता हुं, ध्यान से सुनना. एक. "गुजरात विधानसभा में
मुसलमानों के 17 धारासभ्य होने चाहिए" और दुसरा वाक्य. "सर्व जना सुखिन सन्तु.
सर्व सन्तु निरामया." पहला वाक्य समज में आया. दूसरा समज में नहीं आया. मतलब, जो आप की समज में ना
आए, वह है फासीवाद. जब तुम कहोगे कि गुजरात विधानसभा में मुसलमानों के सत्रह
धारासभ्य होने चाहिए, तब फासीवादी बोलेगा, "सर्व जना सुखिन सन्तु.
सर्व सन्तु निरामया." मतलब, अगडम् बगडम्.
फासीवाद नहीं चाहता कि मुसलमान इस देश का प्रतिनिधित्व करें, नेतृत्व करें.
अगर किसी मुसलमान ने पूरे समाज का नेतृत्व किया तो उसे खत्म कर दो. उसकी हत्या भी
कर दो, जैसे अहसान जाफरी की हूई इस तरह. फासीवाद इस देश में दलितों, आदिवासियों, मुसलमानों
से लेकर तमाम वंचित समुदायों के सामाजिक, राजकीय, आर्थिक, सांस्कृतिक अधिकारों को
नष्ट करना चाहता है. यह भी ध्यान में रहें.
अब मैं आप के समक्ष एक परचा पढ़ता हुं. गुजरात विधानसभा के चुनाव के दौरान यह
परचा निकाला गया था. उस में अंबाजी माता का मंदिर का फोटो है. उपर लिखा है, "बोल मेरी अंबे ......
जय जय अंबे." फोटाग्राफ के नीचे लिखा है, "करोडों लोगों की आस्था का केन्द्र
जगविख्यात अंबाजी मंदिर आतंकवादियों के हिट लिस्ट में है तब ......... क्या मा
जगदंबा के ट्रस्ट में एक मुसलमान को बिठाना है? जरा सोचो ...... अगर दांता में
कोंग्रेस का मुसलमान उम्मीदवार जीत गया तो अपने आप अंबाजी ट्रस्ट में सभ्य बन
जायेगा – क्या करेंगे? मा जगदंबा के स्थान की पवित्रता टीकी रहे यह हम सभी का
कर्तव्य है. बोल मेरी अंबे ...... जय जय अंबे ......... प्रकाशक : महेसाणा माइ मंडळ."
ऐसे हजारों परचे छपवाकर दांता क्षेत्र में बांटे गये और कोंग्रेस का मुस्लिम
उम्मीदवार चुनाव हार गया. यह है फासीवाद, जो धर्म के नाम पर लोगों को उक्साता है,
विभाजित करता है और एक समुदाय के राजकीय प्रतिनिधत्व को खत्म करता है.
मधु कीश्वार नाम की एक औरत मोदी की चमची है. अभी थोडे दिन पहले जुनागढ में आई थी
और मीडीयावालों के आगे मोदी की मंजीरा बजाकर चली गई थी. मधु ने काफीला नाम की
वेबसाइट पर एक आर्टिकल में मोदी सरकार को मिले राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय एवोर्ड्स
की लंबी सूचि रखी है. उस में ज्यादातर एवोर्ड्स वर्तमान युपीए सरकार ने दिए है.
ऐसा क्यों? दूसरी तरफ, गुजरात सरकार के तमाम दस्तावेजों में एक वाक्य हंमेसा आता
है कि "1991 में केन्द्र सरकार (मतलब मनमोहन) ने अर्थतंत्र को खुला किया (मतलब
वैश्विकरण किया) उस प्रक्रिया के अच्छे फल गुजरात ने चखें है." अर्थात् गुजरात ने जो
भी विकास किया है, उस में मनमोहनजी का बहुत बडा योगदान है. तो फिर मोदी को मनमोहन
से क्या एतराज है? मोदी प्रधानमंत्री बनकर क्या यह सिद्ध करना चाहते हैं कि देखो
भैया मैं ताता, बिरला, अंबाणी, अदाणी, जिंदाल के तलवे मनमोहन से ज्यादा संजिदगी से
चाट सकता हुं. बहरहाल, यह तो इस देश के पूंजीपतियों के तलवे चाटने की स्पर्धा
मात्र है.
फासीवाद का दूसरा सब से बडा लक्षण भी मैं आप को बता दुं. फासीवाद कहता है और
चाहता है कि आप लोग जुहापुरा में बैठकर रोते रहो. दलित थानगढ में और आदिवासी सोनगढ
में बैठे बैठे रोते रहें. तीनों साथ मिलकर अपना दुख ना बांटे, मगर एक दूसरे के
दुश्मन बनकर खडें रहें. यही फासीवाद की तमन्ना है.
इस लिए अगर आप फासीवाद को हराना चाहते हो तो तमाम वंचित समुदायों को साथ मिलकर
एक दूसरे के लिए लडना होगा. फासीवाद खत्म हो जाएगा.
राजु सोलंकी
(भारत में फासीवाद का उद्भव: क्या हम इसे रोक पाएंगे?" विषय पर कर्मशीलों की सभा, आयोजक – जनविकास, अनहद, पर्यावरण मित्र, प्रशांत,
बीएससी. ता. 27 अप्रैल, 2013. महेंदी नवाज जंग होल, अहमदाबाद)