वत्स, ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ये सब ताडन के अधिकारी ऐसा कहने के लिए तुम हमारे अभिनंदन के अधिकारी हो, रूपाला को शाबाशी देते हुए स्वामिनारायण संप्रदाय के स्वामीबापा |
भारतीय
जनता पक्ष के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम रुपाला की एक टीप्पणी ने गुजरात के
दलितों को उत्तेजित कर दिया है. यह टीप्पणी के पीछे क्या है? गुजरात
बीजेपी में मोदी और केशुभाई पटेल के बीच कब से महाभारत चल रहा है. केशुभाई पटेल और
उनका खेमा मोदी को आनेवाले चुनाव में परास्त करने के लिए पूरे गुजरात के शक्तिशाली
पटेल समुदाय को आह्वान कर रहे है. उनका कहेना है कि पटेल समाज मोदी के शासन में
भयभीत है. जिस समुदाय के पांच से ज्यादा मंत्री मोदी की केबिनेट में है, वह समाज
गुजरात में भयभीत कैसे हो सकता है?
ये
वही पटेल समाज है, जिसका एक भी मंत्री 1981 में माधवसिंह सोलंकी के मंत्रीमंडल में
नहीं होने के कारण पूरा समुदाय कांग्रेस से विमुख हो गया था. (वैसे एक वाक्य में यह सारी कहानी हम नहीं कह सकते, इसे हम अलग लेख में डील करेंगे, क्योंकि इस के पीछे आरक्षण की राजनीति भी है) पटेलों की आबादी
गुजरात में बीस फीसदी है. मीडीयावाले उनकी तादाद बढा चढा कर पचीस फीसदी बता रहे
हैं. पटेलों की ताकात उनकी एकता में है. पी फोर पी. पटेल फोर पटेल. यह उनका स्लोगन
है. सरदार वल्लभभाई पटेल, ढेबरभाई, एच. एम. पटेल जैसे नेताओं ने इस समुदाय को
ग्लोबल गुजराती बना दिया है. 1981 के बाद यह समुदाय बीजेपी के समर्थन में तथा
हिन्दुत्व के अभियान में पूरी ताकात से जूट गया था. और उसके चलते केशुभाई पटेल
गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे.
2001
में गुजरात में पहले बडा भूचाल आया, बाद में राजकीय भूचाल आया. 2002 में मोदी मुख्यमंत्री बने. जिस समुदाय ने गुजरात में हिन्दुत्व (अर्थात दंगा
फसाद) फैलाने में बडी भूमिका नीभाई थी, उसके मुखिया केशुभाई को राजकीय वनवास मीला.
पटेल समुदाय के लिए यह बडा सदमा था, मगर मोदी ने अपनी केबिनेट में ज्यादा से
ज्यादा पटेलों को स्थान देकर उन्हे संतुष्ट कर लिया था. गुजरात में हिन्दुत्व
सिर्फ सत्ता हथियाने की विचारधारा मात्र है. मोदी की केबिनेट में पीछडों का यानि बक्षी
पंच, जिसकी 40 फीसदी आबादी है, उसका एक भी मंत्री नहीं है.
फीर
भी अब केशुभाई पटेल और कांग्रेस के संमेलनों मे पटेल समुदाय बडी संख्या मे आ रहा
है. पूरे गुजरात पर कब्जा कर लेने के बाद पटेल समुदाय अब कांग्रेस की ओर चलता
दिखाई रहा है, क्यों? पीछले एक साल से 2002
के दंगों के मुकदमों का नतीजा आ रहा है. ओड, महेसाणा के नरसंहारो में पटेलों को
सख्त सजा मीली है. और भी केसों का नतीजा आनेवाला है. गुजरात के दंगो में दलितों ने
मुसलमानों पर चारों ओर हमला किया ऐसा नेशनल केम्पेन कुछ लोगों ने चलाया था. मगर अब
सच्चाई सामने आ रही है. जो गुनहगार है, उनकी लिस्ट देखने से पता चलता है, कि
दलितों के खिलाफ जानबूजकर केम्पेन चलाया गया था. अब जब पटेलों को उनके गुनाहों की
सजा मीलने लगी है, तब उनका राजकीय नेतृत्व हडबडा गया है. अगर मोदी हार गया तो
गुजरात की राजनीति में पटेल वही व्यूहात्मक स्थान बना पाएंगे, जैसा अभी है? पटेलों के सामने एक ही सवाल है. मोदी रहे या ना रहे, एक साल बाद गुजरात के
मंत्रीमंडल में हमारा राजकीय प्रभुत्व यथावत रहेना चाहिए.
इसी हडबडाहट में रूपाला ने बीजेपी के कार्यकर्ता संमेलन में तुलसीदास की चोपाई
"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ये सब ताडन के अधिकारी" कहते हुए कार्यकर्ताओं को केशुभाई के गुट को सबक शिखाने का आह्वान किया. तुलसीदास रामभक्त थे. राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे. मर्यादा पुरुषोत्तम वह होता है, जो सभी वर्णों को, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र को उनके वेद-प्रमाणित कर्मों के अनुसार जीना शीखाता है. अगर कोई शंबुक इस मर्यादा का उल्लंघन करता है तो उस की कत्ल करना यह मर्यादा पुरुषोत्तम का काम होता है. और यहां तो खुद पुरुषोत्तम रुपाला है. वह अपने आप को राम ही समजता होगा. यह रुपाला खुद शुद्र है. मगर उसने हिन्दुत्व का दारु इतना पीया है कि वह अपना
शुद्रत्व भुल गया है. वह जिसके खिलाफ बकवास कर रहा है, वह केशुभाई भी शुद्र है, केशुभाई
ने भी हिन्दुत्व का दारू इतना पीया है कि वह भी भुल गये है कि वह शुद्र है. अब
शुद्र ने शुद्र को गाली दी है. और यह दोनों शुद्र क्लासीक सेन्स में शुद्र ही नहीं
है, इनकी आर्थिक ताकत इतनी बडी है कि वह ब्राह्मणों पर भी राज कर रहे है.
गुजरात
के बाकी बचे सच्चे शुद्र है इसका क्या हाल है? ठाकोर पटेल के बाद सब से बडा समुदाय है. उनकी भी बीस फीसदी आबादी है. वे रोयल
ब्लड नहीं है, दरबार, राजपुत नहीं है, उन्हे भी बीजेपी ने दरबार, क्षत्रिय का दारु
पीलाकर हिन्दुत्व की तलवार हाथ में दे दी है. कांग्रेस भी उन को क्षत्रिय संमेलन
के बेनर तले उनको इकठ्ठा कर रही है. कांग्रेस को ठाकोर की आइडेन्टीटी उजागर करने
में कोई इन्टरेस्ट नहीं है. रबारी, भरवाड, मालधारी नाम का एक दुसरा समुदाय है, काफी
उर्जा है उन में, मगर उन्हे भी गोवध के नाम पर कसाईओं के पीछे बीजेपी ने लगा दिया
है.
ये सारे शुद्रों को रूपाला ने गाली दी हैं, उन्हे उसका पता तक नहीं है, वे सो
रहे है, और हमारे दलित, जो अतिशुद्र है, वे सारी लडाई अपने कंधे पर ले कर उछल रहे
हैं. हमारी हमेशा यही नियति रही है. पीछडों के आरक्षण की लडाई भी हम लडते हैं और
वे हमें ही गालियां देते रहते हैं. कुछ लोग हम में ज्यादा बुद्धिशाली है, ज्यादा
संवेदनशील है. वैसे यह अच्छी बात है, मगर इससे हमारा कोई भला नहीं होनेवाला. हमें
मैदाने जंग में कुदने की कोई जरूर नहीं है. अन्य शुद्रों को जंग में उतारना है.
अगर वे वैसा नहीं करते तो क्रान्ति के लिए थोडा इंतजार और सही.
- राजु सोलंकी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें