बीजेपी देश के छ
राज्यो में सत्ता पर है. छत्तीसगढ, झारखंड, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्णाटक.
बीजेपी पंजाब, बिहार, नागालेन्ड में एनडीए के घटक पक्षो के साथ सरकार में है. ओरीस्सा
में बीजेडी ने बीजेपी को छोडकर अपने बलबूते पर सरकार बनाई. उत्तर प्रदेश,
राजस्थान, उत्तरांचल और अरुणचल प्रदेश में बीजेपी की पहले सत्ता थी.
दूसरी तरफ, कांग्रेस
आठ राज्यो में सत्ता पर है. दिल्ही, अरुणाचल, राजस्थान, मीजोरम, मणीपुर, मेघालय,
आंध्र प्रदेश और हरीयाणा. कांग्रेस आसाम, उत्तराखंड, जम्मु और कश्मीर, केरल, पश्चिम
बंगाल और महाराष्ट्र में युपीए के घटक पक्षो के साथ सरकार में है.
देश के दो
महत्वपूर्ण राज्यो में से, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु में बिन-बीजेपी, बिन-कांग्रेसी
सरकारें है. कुल मिलाकर देश का यह राजकीय चित्र है. अब इस देश में एलायन्स युग है.
कोई भी पक्ष अपने बलबुते पर केन्द्र में सरकार बनाने की क्षमता नहीं रखता. और इस
हालात में गुजरात का कोई व्यक्ति चाहे वह गुजरात में अपने तरीके से कैसे भी सरकार
चलायें, लोगों को विकास की परिभाषा समजायें, एक हजार लोगों को मरवाकर "अब शांति की स्थापना हो चूकी है" ऐसा मानें और सभी को मनवायें, चाहे कुछ भी करें,
मगर ऐसा व्यक्ति इस देश का प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है?
कल जब नरेन्द्र मोदी
अहमदाबाद के खानपुर में बीजेपी के कार्यालय पर हूइ सभा को संबोधित करते हुए "पीएम, पीएम" के नारों के बीच अपना सिर हिलाकर जिस तरह से कह
रहे थे कि "अगर आप कहते हैं तो मैं 29 तारीख को एक दिन के
लिए दिल्ही जा आउंगा", तब "मन ही मन में लड्डु फुटे" वाला इस्तेहार देखने जैसा लग रहा था. अब तो यह
लड्डु गुजरात की "छ करोड की जनता" के मन में फुट रहे
हैं. पूरा दिन इलेक्ट्रोनिक मीडीया पर जो बहस चली, उसमें सबसे ज्यादा सटीक टीप्पणी
एक कांग्रेसी नेता ने की कि "नरेन्द्र मोदी को
अपनी जित के लिए इलेक्ट्रोनिक मीडीया का शुक्रिया अदा करना चाहिए. मीडीया ने
गुजरात में बीजेपी का जो भी राष्ट्रीय नेता आया उसके मुंह में चुंगा ठुंसा दिया कि
"बताईए, नरेन्द्र मोदी
देश के प्रधानमंत्रीपद के लिये लायक है या नहीं?" अब आप ही बताइए, चुनाव
के दिनों में कौन ऐसा कहेगा, कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्रीपद के लिए नालायक है.
दस साल पहले हमने इस आदमी पर एक कविता लिखी थी. "अगर मैं प्रधानमंत्री बन गया, दिल्ही की गद्दी पर बैठ गया, आनेवाली पीढियां याद करेगी, ऐसा दिखाउंगा करिश्मा." हम दस साल पहले इस आदमी की महत्वाकांक्षा को भांप गये थे. अब उसकी आकांक्षाओं को प्रदर्शित करने का एक बडा राजकीय मंच खडा हो गया है. क्या वाकइ में गुजरात भारत का भविष्य है?
दस साल पहले हमने इस आदमी पर एक कविता लिखी थी. "अगर मैं प्रधानमंत्री बन गया, दिल्ही की गद्दी पर बैठ गया, आनेवाली पीढियां याद करेगी, ऐसा दिखाउंगा करिश्मा." हम दस साल पहले इस आदमी की महत्वाकांक्षा को भांप गये थे. अब उसकी आकांक्षाओं को प्रदर्शित करने का एक बडा राजकीय मंच खडा हो गया है. क्या वाकइ में गुजरात भारत का भविष्य है?
वैसे
तो गुजरात भारत की ही एक प्रतिकृति है. गुजरात और भारत की स्थिति में क्या फर्क है? दंगा भारत के हर कोने में होता है.
गुजरात में भी होता है. गुजरात में दस साल से दंगा नहीं हुआ, क्योंकि बीजेपी सत्ता
पर है. बीजेपी विपक्ष में होती, तो दंगा ही करवाती थी. हर रथयात्रा रक्तयात्रा
होती थी. नरेन्द्र मोदी ने तो दंगों का, नरसंहार का वर्ल्ड रेकोर्ड कायम किया है.
सवाल यह है कि ऐसे नृसंश हत्याकांड को अंजाम देनेवाली व्यक्ति को हम भारत के
प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगे?
नरेन्द्र
मोदी अटलबिहारी बाजपेई नहीं है. 1975 में इमरजन्सी के दौरान बाजपेई की ईसी खानपुर
इलाके में सभा हुई थी, जहां अभी बीजेपी का कार्यालय है. बाजपेई के वक्तव्य के
दौरान मस्जिद से अझान की आवाज आई थी. पूरी पांच मिनट बाजपेई रूके थे. दस हजार से
भी ज्यादा लोग बाअदब बैठे रहे थे. अझान खत्म होने के बाद बाजपेई ने अपना वकतव्य
शुरु किया था. क्या यह बाजपेई का "मुस्लीम तुष्टिकरण" था? क्या यह बाजपेई का "स्युडो सेक्युलारीझम" था? शायद, बाजपेई का यह रूप उन्हे इस देश
के प्रधानमंत्रीपद तक ले गया था. इसी बाजपेई ने मोदी को राजधर्म निभाने का इंगित
किया था.
इस
देश के संविधान में "सेक्युलारीझम" शब्द लिखने के बाद अब शायद पहली बार
इस शब्द का अर्थ समजने का और समजाने का वक्त आ गया है. गुजरात के चुनाव नतीजों के
अर्थों को समज लेना चाहिए. मोदी ने कल अपने वकतव्य में जो कहा उसे ध्यान से सूने.
उन्हो ने कहा " जिन्हो नें अस्सी के दसक में जातिवाद
का जहर देखा है, वे लोग गुजरात में कांग्रेस का शासन लाना नहीं चाहते" यह बहुत महत्वपूर्ण वाक्य है. अस्सी
के दसक में ओबीसी का आरक्षण बढाकर कांग्रेस ने जो जहर फैलाया था, मोदी उसकी बात कर
रहे थे.
मोदी
के इस मंतव्य के साथ गुजरात का बमन, बनीया, पटेल, सवर्ण संमत है. मोदी के इस
मंतव्य के साथ बमन-बनीया-पटेल-सवर्ण बिरादरी का बना पूरा संघ परिवार संमत है. मोदी
के इस मंतव्य के साथ इसी बिरादरी द्वारा उकसाया गया और मुसलमानो से लडाया गया और
लडते लडते पूरा का पूरा हताहत किया गया दलित, आदिवासी, ओबीसी संमत है. मोदी के इस
मंतव्य के साथ इसी लडाई में पराजित हुआ, अपनी बाकी जिंदगी चैन से जिने की महेच्छा
रखनेवाला मुसलमानों का बहुत बडा हिस्सा है. मोदी के इस मंतव्य के साथ गुजरात के वे
तमाम लोग है, जो दलित-आदिवासी का शोषण करते हुए बनी इमारतों में खुली सेल्फ
फायनान्स संस्थाओं में अपनी भविष्य की पीढियों के सुवर्णयुग का इन्तजार कर रहे
हैं. मोदी के इस मंतव्य के साथ गुजरात के वे गांधीवादी भी है, जिन्हो ने "अस्सी के दसक का जातिवादी जहर देखा है"
और जो दलित-आदिवासी-ओबीसी को कभी भी इस देश के शासन में हिस्सा देने के लिये तैयार
नहीं है.
2014 का चुनाव राहुल बनाम मोदी का होगा ऐसी घोषणा
हो चूकी है. इस देश की जनता को मूर्ख बनाने की घोषणा हो चूकी है. जो लोग उदारीकरण,
वैश्विकरण की नीतियां घडने में एक दूसके के साथीदार है, उसका अमल करने में भी एक
दुसरे की मदद करते हैं, वही लोग एक नाटकीय चुनावी जंग में एक दूसरे पर किचड
उछालेंगे, कमल खिलायेंगे, पंजा फैलायेंगे. सवाल यह है कि क्या हम इस नाटक के मूक और
मूर्ख प्रेक्षक बनकर ही रह जायेंगे या कुछ करेंगे?
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