हमें
विकास नहीं चाहिए. हम हमारी मगन कुंभार की
चाली में, शीहोरी
के बीटी कोटन के खेतों में, जीनींग
मिलों में, खेतो-खदानों में हमारी पसीने की कमाई
खाते आये हैं. हम ही तो बनाते हैं और साफ-सूथरे
रखते हैं, ये
सारे ओवरब्रिज. आप सिर्फ एक काम किजीए. गुजरात
के और देश के तमाम मंदिरो में
एक वाल्मीकि-भंगी-महेतर को पुजारी बना दिजीए.
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