"1985 में संभाजीनगर के चुनाव के बाद मराठावाडा में शिवसेना का त्वरित गति से प्रसार
हुआ. सेना का मुख्य शस्त्र अंबेडकर का विरोध था. मराठावाडा में दलितों को छोडकर
बाकी सभी लोग सामान्यत: नामांतर के पक्ष में नहीं थे, यह बात शिवसेना को मालुम थी. नामांतर का विरोध
करेंगे तो इससे राजकीय फायदा होगा, ऐसा सोचकर शिवसेना ने नामांतर विरोधी भूमिका
अपनाई थी. बालासाहब ठाकरे ने धोषणा की थी कि किसी भी परिस्थिति में मराठावाडा
विश्व विद्यालय का नामांतरण नहीं होने देंगे. उन्होने ऐसा प्रचार भी किया कि "डॉ. बाबासाहब अंबेडकर निज़ाम
के एजन्ट थे." इस प्रचार से अंबेडकर के अनुयायी बहुत गुस्सा हुए थे और एक बार फिर मोरचा,
प्रति मोरचा और धमकियों की बाढ़ उमटी. रीडल्स प्रश्न को लेकर जिस तरह सामाजिक
वातावरण दिन प्रति दिन गर्म होता गया था इसी तहर फिर से वातावरण गर्म होने लगा था.
यह सारी वारदातें 1992 जुलाई और ऑगस्ट महिने की है." (पेइज 109, मैं, मनु और संघ, रमेश पतंगे)
आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने
अपनी किताब में बाल ठाकरे की दलित विरोधी भूमिका का इस तरह सटीक वर्णन किया है. हिटलर
का प्रसंशक ठाकरे बाघ था या लोमडी था, जर्मन था या भारतीय था यह प्रश्न फिलहाल हम
नहीं पूछेंगे, मगर कभी दलित तो कभी मुसलमान, कभी दक्षिण भारतीय तो कभी बिहारी के खिलाफ झहर उगलनेवाले इस
गुन्डे को "देशभक्त" का ख़िताब देनेवाली जमात को हम माफ नहीं कर सकते.
1988 में शिवसेना ने
बाबासाहब अंबेडकर के ग्रंथ "रीडल्स इन हिन्दुइझम" का विरोध किया था. इस ग्रंथ के परिशिष्ट "रीडल्स ऑफ राम एन्ड क्रिष्ना" (राम और कृष्ण के गुढ रहस्य) से उन्हे एतराज
था. हालांकि उसमें बाबासाहब ने कुछ नया नहीं लिखा था. वाल्मीकि रामायण और बौद्ध
रामायण में यह सारी बातें सदियों पहले लीखी जा चूकी थी. मगर, 1988 में
शिवसेना-बीजेपी तथा पूरा संघ परिवार अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराने की साजिश बना
रहे थे. उस वक्त राम की दिव्यता में जरा सी भी दरार उन्हे मंजुर नहीं थी. रीडल्स
किताब की होली करके शिवसेना ने मुंबइ में दो लाख की रेली निकाली थी. तब
अंबेडकरवादियों ने चार लाख की रेली निकाली थी और दलित युवकों ने हुतात्मा चौक में
महाराष्ट्र के स्वाभिमान पर शिवाम्बू छीडककर पूरे देश को यह संदेश दिया था कि
बाबासाहब के विचारों को दफनाने के किसी भी दुस्प्रयास के भयानक परीणाम आयेंगे.
उस समय हमने अहमदाबाद में
रेली निकाली थी. उसमें भाग लेने के लिए मुंबई से प्रा. अरुण कांबले आए थे. कांबले
ने भयानक मानसिक स्थिति में कुछ साल पहले आत्म-विलोपन किया था. ठाकरे जैसे मनुवादी
देश के आर्थिक पाटनगर में मूडीवादियों के दलाल बनकर, कामगार आंदोलनों को खत्म
करके, अपने ही देश बांधवों के खिलाफ जहर उगलकर देश की एकता नष्ट करके मरते है तब
मीडीया उसे महात्मा बनाने में कोई कसर नहीं छोडती और कांबले जैसे अंबेडकरवादी
आत्म-विलोपन करते है, किसी को पता तक नहीं चलता. आज एक लोमडी की मौत पर एक शेर
अंबेडकरवादी को मेरा सलाम.
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