बुधवार, 5 दिसंबर 2012

बाबरी से शबरी: वाया गोधरा

 
22 फरवरी 2006. अहमदाबाद के श्यामल चार रस्ते के पास ठेला गिर जाने से दो मजदूर दब कर मर गये. उनके नाम थे बंसी मचार और छगन मेणा. दोनो आदिवासी. अहमदाबाद की इस दुर्घटना के बाद वडोदरा में हनुमान टीला के पास हिन्दुत्व का ठेला गीरा और नव लोग कुचल के मर गये. इसमें भी दो आदिवासी थे, शैलेष तडवी और सुरेश वसावा.

श्यामल चार रस्ते पर मारे गये आदिवासी माता शबरी के संतान थे. शबरी बेचारी स्वर्ग में बैठी बैठी कल्पांत करती होगी. बेस्ट बेकरी केस में जन्मटीप की सजा भुगतनेवाले वे आदिवासी भी शबरी के संतान थे. किसी भी सच्चे हिन्दु को उनके लिये संवेदना होनी चाहिये. विश्व हिन्दु परिषद ने गोधरा-कांड के बाद दंगो में हिन्दुत्व की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देनेवाले दलित-आदिवासियों के प्रत्येक कुटुंब को रू. 50 लाख देना चाहिये. हनुमान टीला की मुलाकात के लिये गये एक हिन्दु साधु ने जिसका पिता अभी जेल में है उस बच्चे को 5,000 रूपया का चेक दिया. क्या ये शबरी माता की मजाक नहीं है? गुजरात की पांच करोड जनता का अपमान नहीं है? मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्वंय रू. 50 लाख का चेक लेकर हनुमान टीला पर जाना चाहिये. आप कहेगें, कि नरेन्द्रभाई इतना सारा पैसा कहां से लायेगें? मोदी उनको उपहार में मिली भेंटो की नीलामी करके सरकारी तीजोरी में जमा करने का नाटक करते हैं. वे अपने कपडों की नीलामी करा सकते है बाद में वे निवस्त्र घूमेंगे ...... ! इस देश में नागा साधु भी पूजे जाते हैं.

इच्छाधारी नाग की कहानी आपने सुनी है? सबने सुनी है. मगर, चड्डीधारी नाग के बारे में अपने सुना है? जिसे वो डसता है, उसे हिन्दुत्व का जहर चडता है. दलित आदिवासी जैसे दुर्बल मनवाले लोंगो को तो यह जहर जल्दी चडता है. यह चड्डीधारी नाग वैसे तो भाजप नाम के बिल में रहेता है, परन्तु जरूरत पडने पर कोंग्रेस में भी प्रगट होता है, और काम्युनिस्टो में भी. हमारी अनेक एन.जी.ओ. में भी बैठा है यह काला चड्डीधारी नाग. यह व्यापारी महामंडल में भी है और गुजरात के साहित्य परिषद में भी है. 1985 में गुजराती साहित्य परिषद के मुंबई अधिवेशन में रजिस्ट्रेशन के समय हर डेलीगेट को केसरी रंग का झोला भेंट दिया गया था.

आज देश में निजीकरण की हवा चल रही है. असंगठित उधोगो की बोलबाला है. ईंट का भठ्ठा, पावर लुम ....... यादी कितनी लंबी है? उसमें अब एक नया उधोग भी जुड गया है. हिन्दुत्व का उधोग. हर उधोग की तरह इस उधोग में भी दलित आदिवासियों का भयंकर शोषण होता है. उनकी कामगीरी तो देखो. कोई शीफ्ट नही. चौबीस घण्टों, बारह महिना हिन्दुत्व की फेक्टरी 'वाइब्रन्ट' रखने के लिये संतोषी माता, दशा मा, शबरी माता सब की पूजा करना. आसाराम, सच्चिदानंद, श्री श्री रविशंकर, मूरारी सब की कथाओ में भक्तिपूर्वक जाना. महोल्ले के नाके पर गणेश चतुर्थी के दिन विश्व परिषद द्वारा दी गई बीस-पच्चीस फुट की सिद्धी विनायक की प्रतिमा के आगे दिन-रात आरती उतारना और फुर्सद के समय में दारू पीकर, तलवारे लेकर मुसलमानों के सामने लडाई करना. कोई महंगाई भथ्था नहीं. टी.डी.ए. नहीं. रेलगाडियों में मुफ्त जाना और वापस आते समय रास्ते में झुलसकर मरना और हिन्दुत्व के तबीब डॉ. तोगडिया को देहदान करना. बी.जे.मेडीकल में आप देहदान करें तो लडके-लडकियां चीर-फाड करके शरीर रचना का ज्ञान प्राप्त करेंगे. डॉ.तोगडिया को देहदान करेंगे तो आपकी लाश को केसरी कफन में लपेटकर ट्रक में डालकर ‘जय श्री राम' के गगनभेदी सूत्रों के साथ अहमदाबाद की सडको पर घूमायेंगें.

("बाबरी से शबरी: वाया गोधरा" विषय पर अहमदावाद के महेंदी नवाझ जंग हॉल में दिये वक्तव्य के अंश. ता.28.2.2006)

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