शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

मंदिर, मस्जिद और शौचालय



मगर सवाल यह था कि बाबरी मस्जिद की जगह मंदिर होना चाहिए, शौचालय होना चाहिए या फिर उसी जगह वापस मस्जिद बननी चाहिए. उस जगह पर मंदिर होना चाहिए ऐसा कहनेवाले अपनी बात घुमाकर ऐसा कहे कि ठीक है मंदिर नहीं बना तो शौचालय बना सकते है. यह बात ठीक नहीं. होना यह था कि उस जगह वापस मस्जिद ही बननी चाहिए थी.

1992 में अयोध्या में जो कुछ भी हुआ, इस देश के बूनियादी उसूलों से खिलाफ था. उस घटना ने देश के कल्चरल हाइजिन से खीलवाड किया था. अगर आप पूरे देश में शौचालय बनाना चाहते है तो शौख से बनाइए. अयोध्या में मस्जिद ही बनानी पडेगी. आज नहीं तो कल. 

और दूसरी बात. हिन्दु और मुसलमान दोनों समुदाय यह बात समज लें कि उनके मंदिरों और मस्जिदों से भी बडी चीज है उन इन्सानों का सम्मान जिन्हो नें आज तक उन का मल ढोया है. हिन्दु-मुसलमान दोनों ने दलितों के साथ नाइन्साफी की है. मंदिर-मस्जिद का विवाद इस नाइन्साफी पर नमक छीडकने जैसा है.

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