मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

वंचित समुदायों की सत्ता में भागीदारी - अहमदाबाद में संमेलन


जिन्होने पसमांदा मुस्लीम महाज का गठन
किया, मसावात की जंग किताब में धर्मांतरीत
दलितों की दिल दहेलानेवाली दास्तान लिखी,
ऐसे अली अनवर को
इस संमेलन में बुलाने का एक मकसद था.

देश की आजादी के 58 साल बाद भी वंचित समुदायों के लिये आरक्षण की मांग क्यों उठती है? निजी या सार्वजनिक, किसी भी क्षेत्र में आरक्षण लाने की चेष्टा का इतना हिंसक विरोध क्यों होता है? इन दो प्रश्नों के आसपास घूमती राजनीति में वंचित समुदाय कहां है? राज्यसत्ता में उनकी भागीदारी कितनी है? इसका मूल्यांकन करने के लिये ता. 6 अगस्त, 2006 को अहमदाबाद में एक विशाल संमेलन का आयोजन किया है। उसका विषय है, "वंचित समुदायों की सत्ता में भागीदारी"। इस विषय की सर्वांगी चर्चा तो हम उपरोक्त संमेलन में करेंगे ही, परन्तु इसके पहले इस संमेलन के आयोजक संस्थायें इस विषय में अपनी भूमिका स्पष्ट करना चाहती है।

बात शुरु होती है 1981 से ....

गुजरात के राजकरण में 1981 का वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इस साल गुजरातभर में भयानक, जाति-द्वेषी, हिंसक आरक्षण विरोधी दंगे हुए थे। दो हजार साल से जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था के कारण राज-काज, न्याय-प्रशासन, शिक्षण जैसे क्षेत्रों में वर्चस्व जमानेवाले सवर्णों के द्वारा शुरु किये इस हुल्लड में सात दलितों की हत्या हुई, अहमदाबाद, देत्रोज, ऊतरसंडा सहित असंख्य स्थानों पर दलितों के झोंपडियां जलाई गई। फलस्वरुप, उसके बाद के वर्ष में दलितों ने होली के त्यौहार का बहिष्कार किया, अहमदाबाद के टेगोर हॉल में और बाद में खास-बाजार के मेदान में दलित पेंथर की पहल से आयोजित दलित-मुस्लिम-लघुमती संमेलनों में हजारों लोग उपस्थित हुए। जिससे चौंक उठे संघ परिवार ने हिन्दु धर्म के संतो-महंतो-स्वामियों का साथ लेकर दलितों, आदिवासीओं और अन्य पिछडे वर्गो के लोगों को हिन्दु धर्म की बगल में रखने के लिये मुस्लिमो को "टार्गेट" बनाकर कोमी दंगो का सीलसीला शुरु किया।

अहमदाबाद के सवर्ण बहुल क्षेत्रो में मुस्लिमों का रहेना अब मुश्किल होने लगा था, जिसकी वजह से वे 1981 के बाद कोट के अंदरुनी विस्तारो में स्थांलतर करने लगे। इस प्रक्रिया का अंत में भोग बने दलित। पिछले पच्चीस सालों में कोट के अंदर के मुस्लिम-बहुल विस्तारों में दलितों के करीब बीस मोहल्ले खाली हो गये। 1981 के बाद जन्मी दलितों की युवान पीढी को समझ आयी तब से वह मुस्लिम-विरोधी विषयुक्त वातावरण में पली और केसरीया रंग से रंग गई। उसी तरह मुस्लिमों की युवा पेढी भी दलित-मुस्लिम एकता के इतिहास को भूलकर दलित-विरोधी बन गई।

1985 के बाद जब कांग्रेस उसकी भ्रष्ट नीतियो के कारण खत्म हो रही थी, तब रउफ वली उल्ला जैसे सज्जन राजपुरुषो की निर्मम हत्या के कारण मुस्लिमों का बचाखुचा नेतृत्व भी खत्म हो गया। इस समय हिन्दुत्व की लहर पर सवार हुई भाजपा ने राजकीय शतरंज में मैदान मार लिया। उसी समय दौरान गुजरात साहित्य परिषद के अध्यक्ष पद पर विश्व हिन्दु परिषद के प्रमुख के. का. शास्त्री की नियुक्ति करके गुजरात के साहित्यकारों ने अपनी कट्टर मानसिकता का परिचय दिया। के. का. शास्त्री जैसे कट्टरपंथी को गुजराती साहित्य परिषद का अध्यक्ष बनाकर गुजराती साहित्यकारो ने "हिन्दुत्व" को न्यायोचित साबित किया।

हिन्दुत्व के एजेन्टः कल और आज

1985 में बक्षी पंच के तहत शामिल की गई जातिओं को मिले 27 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ फिर से गुजरात-व्यापी आंदोलन शुरु हो गया, तब गुजरात बंद के समर्थन में मंदिर भी बंद रहे। 1981 से 1985 के दौरान बक्षी पंच में समाविष्ट वाघरी, रबारी, ठाकोर, खारवा, कोली जैसी जातिओं का पांडुरंग आठवेल जैसे धूर्त धर्मगुरुओं ने हिन्दुत्व का अफीम पीलाकर बेहोश बनाने का अभियान शुरु किया। पांडुरंग कहेता था "कोई भी व्यक्ति कोई भी धंधा कर सके यह विचार योग्य नही है, इसलिये राम ने शंबूक का वध किया था" (संस्कृति चिंतन, पा.-147)
   
पिछले साल 2005 में जैनो को भडकाकर सर्वोच्च अदालत में कतलखानों को बंद करने की रिट करनेवाले जैन साधु चंद्रशेखर विजयजी भी 1981 के बाद पांडुरंग आठवले की तरह सवर्णों को भडकाने में सक्रिय हुए थे। पिछडे वर्गों के खिलाफ हलालह विष उगलता चंद्रशेखर विजयजी कहता है कि "एक समय ऐसा आयेगा कि राजकरण के प्रशानिक क्षेत्र में सभी जगह बी.सी. का प्रभुत्व हो जायेगा। राष्ट्रपति बी. सी., प्रधानमंत्री बी. सी., बैंक में बी. सी., लश्कर में बी.सी. सभी जगह उनके आधिपत्य के नीचे आ जाएगी भारत की बलवान प्रजा क्षत्रिय, वेद, विद्या-व्यासंगी प्रजा ब्राह्मण, बुद्धिमान प्रजा जैन!"

"इससे किसी का कल्याण नहीं हो सकता। बी. सी. का भी नही, क्योंकि इन क्षेत्रों में उनका काम नहीं है। वहां जिस प्रकार की शक्ति, बुद्धि वगेरे की जरुरत है, वह उन्हें विरासत में मिली ही नहीं है। सिर्फ शिक्षण से सब कुछ नही मिलता। उन्हे उंचा लाने का कोई दूसरा रास्ता भी नही है।"

"संस्कृति के जानकार कहते है कि उन्हे उंचा लाना हो तो उनकी रोजी-रोटी का वंशपरंपरागत जो व्यवसाय था, वह वापस लाना होगा। हरिजनों को उनका हाथशाल का धंधा, गिरिजनो को उनके अडाबीड जंगल वापस सोंप देने पडेंगे।"

"जगजीवनराम जैसे किसी को प्रधान बना देने से, एक ही नल से सब को पानी पिलाने से सब का पेट नही भरनेवाला। यह तो धोखाधडी है। पिछडी कही जानेवाली जातिओं को गलत रुप से भडकाकर उन्हे बर्बाद और बेहाल करने की कूटनीति है।" ( अब तो तपोवन ही तरणोपाय, पा.47)

हिन्दुत्व के इन एजेन्टो ने भाजप के राजकीय उदय में बहुत बडा योगदान दिया था।

मुस्लिमों का राजकीय नुकसान किसका फायदा?

1981 के समय में गुजरात विधानसभा में नव मुस्लिम धारासभ्य थे। (बोक्स) आज मुस्लिमों का प्रतिनित्व करनेवाले सिर्फ तीन धारासभ्य है। पिछले पच्चीस वर्षों की यह फलश्रृति है। जिन 6 बैठकों पर पहले मुस्लिम धारासभ्य चुने जाते थे, उन बैठकों पर अब सवर्ण धारासभ्य चुने जाते है। इसमें भी 6 बैठक तो भाजप ले गया है। इस तरह मुस्लिमों की बैठकें घटी, जिससे दलित, आदिवासी या फिर बक्षी पंच की बैठके बढी नही है। मुस्लिमों का राजकीय नुकसान उच्च सवर्ण जातिओं (बानिया, ब्राह्मण, पटेल) के लिये राजकीय फायदे में परिवर्तित हुआ। मुस्लिमों के राजकीय नुकसान से दलित, आदिवासी या फिर बक्षी पंच की जातिओं कोई राजकीय फायदा नही हुआ।

हिन्दुत्व की लडाई का मतलब है "खाने में सवर्ण, पिसने में पिछडे"। जाति निर्मूलन समिति के संशोधन के अनुसार, 2002 के कोमी दंगो में अहमदाबाद में हुए 2945 धरपकड़ में 797 बक्षी पंच के लोग, 747 दलित, 19 पटेल, 2 बनिया और 2 ब्राह्मण थे। जेल में आदिवासी और बंझीपंच के लोग और विधानसभा में गये सवर्ण।

क्रम
बैठक
1981 के समय
वर्तमान धारासभ्य
 1
वांकानेर
पीरजादा मंजुर हुसैन
ज्योत्सना सोमाणी (भाजप)
2
जामनगर
महमद हुसेन बलोच
वसुबेन त्रिवेदी (भाजप)
3
सिध्धपुर
शरीफभाई भटी
बलवंतसिंह राजपूत (कांग्रेस)
4
गोधरा
अब्दुलरहीम खालपा
हरेश भट्ट (भाजप)
5
ठासरा
यासीनमिंया मलेक
रमेश शास्त्री (भाजप)
6
भरुच
महमद पटेल
रमेश मिस्त्री (भाजप)
7
सुरत (पश्चिम)
मोहमद सुरती
भावना चपटवाला (भाजप)
8
कालुपुर
मोहमद हुसेन बारेजीया
फारुक शेख (कांग्रेस)
9
जमालपुर
लालभाई कुंदीवाला
सबीर काबली (कांग्रेस)
  
हाल में ही मुस्लिमों की सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति के बारे में राष्ट्रीय अभ्यास में मालूम पडा कि देश के अधिकतर प्रदेशो में मुस्लिम दलितों के जितने ही सामाजिक, आर्थिक और शौक्षणिक रुप से वंचित है। मुस्लिम वंचित होने के बावजूद भी "तुष्टीकरण" का निर्लज्ज आक्षेप हिन्दुत्व के ठेकेदार करते रहते हैं।

आज का संकल्प

गुजरात का वर्तमान राजकरण अंधे मुस्लिम-विरोध की धुरी पर घूम रहा है। हिन्दुत्व के ठेकेदार चाहते हैं कि गुजरात के वंचित समुदायो की सत्ता में भागीदारी का मुद्दा एजेन्डा पर आये ही नही और वह मुस्लिम विरोधी गुब्बारो में घूमते फिरे। अभी के दिनो में एक तरफ, आरक्षण विरोधी आंदोलन चल रहा था तो दूसरी तरफ अहमदाबाद के राजपुर-गोमतीपुर के मुस्लिम एक दूसरे पर पथ्थर मार रहे थे। जिनके हक छिने जा रहे है, वही लोग अंदर ही अंदर लडते रहे ऐसा तख्ता हिन्दुवादी ताकतो ने तैयार किया है। सच्चिदानंद के आरक्षण- विरोधी उच्चारण इसी संदर्भ में देखना चाहिए. सच्चिदानंद जैसे तथाकथित संत ही वर्तमान भाजप सरकार के चुस्त समर्थक है यह भी हमे जान लेना चाहिये।

"वंचित समुदायो का सत्ता में भागीदारी" यही हमारी मांग है। परन्तु, सत्ता छीनने के लिये वंचितो की एकता महत्वपूर्ण है। 2002 के कोमी दंगो के बाद गुजरात में हमने नोंधपात्र कामगीरी की है। इस कार्य को आगे बढाने के लिये वंचित समुदाय के बीच काम करते संगठनों में एकता जरुरी है। अब वंचित समुदायो को आपस में लडने के बजाय राजकीय सत्ता प्राप्त करने के लिये लडना होगा ऐसे संकल्प के साथ इस संमेलन को सफल बनाते है।

- राजु सोलंकी

6 अगस्त, 2006. अहमदाबाद में जाति निर्मूलन समिति, अमन समुदाय तथा वंचित समुदायो में कार्यरत पचास से ज्यादा संगठनो  द्वारा संपन्न संमेलन की कन्सेप्ट नोट. संमेलन को अली अनवर, डा. आनंद तेलतुंबडे, प्रो. चीनोई, मुकुल सिंहा ने संबोधन किया था. 

2 टिप्‍पणियां:

  1. sare wanchit samuday ko ekktha krnahi hamara maksad tha jis trha logoko dhrm ke nampe bata gayatha oar raj karn se dur rakhhe sirf wot bank tarikese upyog kiya he magar hamto abhi bi chahte te sare wanvhit samudayke log ek manchpe aaye oar sattake jo bhukhelog he unko bhagaye oar sattame jaye oar apna hak le yehi to hamari tammnahe sahi log sattpe aaye oar desko sahi chalye bandharan ka hanan naho oar des tarkki kre aaj bhi ham hamari bat pe adaghhe

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